Monday, November 15, 2021

अंग्रेजो से लोहा लेने वाली एक दलित महिला - वीरागना उदा पासी

 अंग्रेजो से लोहा लेने वाली एक दलित महिला -  वीरागना उदा पासी 

अंग्रेजो से लोहा लेने वाली एक दलित महिला 



 इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी पासी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था। लड़ाई के समय वो अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी थीं। उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था जब तक कि उनका गोला बारूद खत्म नहीं हो गया।

ऊदा देवी के पति नवाब वाजिद अली शाह की सेना के एक सैनिक थे। वाजिद अली शाह दौरे वली अहदी में परीख़ाना की स्थापना के कारण लगातार विवाद का कारण बने रहे। फरवरी, 1847 में नवाब बनने के बाद अपनी संगीत प्रियता और भोग-विलास आदि के कारण बार-बार ब्रिटिश रेजीडेंट द्वारा चेताये जाते रहे। उन्होंने बड़ी मात्रा में अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती की जिसमें लखनऊ के सभी वर्गों के गरीब लोगों को नौकरी पाने का अच्छा अवसर मिला। ऊदादेवी के पति भी काफी साहसी व पराक्रमी थे, इनकी सेना में भर्ती हुए।


वाजिद अली शाह ने इमारतों, बाग़ों, संगीत, नृत्य व अन्य कला माध्यमों की तरह अपनी सेना को भी बहुरंगी विविधता तथा आकर्षक वैभव दिया। उन्होंने अपनी पलटनों को तिरछा रिसाला, गुलाबी, दाऊदी, अब्बासी, जाफरी जैसे फूलों के नाम दिये और फूलों के रंग के अनुरूप ही उस पल्टन की वर्दी का रंग निर्धारित किया। परी से महल बनी उनकी मुंहलगी बेगम सिकन्दर महल को ख़ातून दस्ते का रिसालदार बनाया गया। स्पष्ट है वाजिद अली शाह ने अपनी कुछ बेगमों को सैनिक योग्यता भी दिलायी थी। उन्होंने बली अहदी के समय में अपने तथा परियों की रक्षा के उद्देश्य से तीस फुर्तीली स्त्रियों का एक सुरक्षा दस्ता भी बनाया था। जिसे अपेक्षानुरूप सैनिक प्रशिक्षण भी दिया गया। संभव है ऊदा देवी पहले इसी दस्ते की सदस्य रही हों क्योंकि बादशाह बनने के बाद नवाब ने इस दस्ते को भंग करके बाकायदा स्त्री पलटन खड़ी की थी। इस पलटन की वर्दी काली रखी गयी थी।[1]


ऊदा देवी, १६ नवम्बर १८५७ को 36 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई थीं।[2][3] ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें जब वो पेड़ से उतर रही थीं तब गोली मार दी थी। उसके बाद जब ब्रिटिश लोगों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्होने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गयी है।




सार्जेण्ट फ़ॉर्ब्स मिशेल ने सिकंदर बाग के उद्यान में स्थित पीपल के एक बड़े पेड़ की ऊपरी शाखा पर बैठी एक ऐसी स्त्री का विशेष उल्लेख किया है, जिसने अंग्रेजी सेना के लगभग बत्तीस सिपाही और अफसर मारे थे। लंदन टाइम्स के संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने लड़ाई के समाचारों का जो डिस्पैच लंदन भेजा उसमें पुरुष वेशभूषा में एक स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ से फायरिंग करके तथा अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुँचाने का उल्लेख प्रमुखता से किया। संभवतः लंदन टाइम्स में छपी खबरों के आधार पर ही कार्ल मार्क्स ने भी अपनी टिप्पणी में इस घटना को समुचित स्थान दिया।[1] इन्हें इसकी प्रेरणा अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पति मक्का पासी से प्राप्त हुई थी। 10 जून 1857 को लखनऊ के चिनहट कस्बे के निकट इस्माईलगंज में हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौज के साथ मौलवी अहमद उल्लाह शाह की अगुवाई में संगठित, विद्रोही सेना की ऐतिहासिक लड़ाई में मक्का पासी वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके प्रतिशोध स्वरूप उन्होंने कानपुर से आयी काल्विन कैम्बेल सेना के 32 सिपाहियों को मृत्युलोक पहुँचाया। इस लड़ाई में वे खुद भी वीरगति को प्राप्त हुईं। कहा जाता है इस स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर शहीद ऊदा देवी को श्रद्धांजलि दी।



1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय, ब्रिटिश और औपनिवेशिक सैनिकों से घिरे सैकड़ों भारतीय सिपाहियों ने इस बाग़ में शरण ली थी। 16 नवंबर 1857 को ब्रिटिश फौजों ने बाग़ पर चढ़ाई कर लगभग 2000 सिपाहियों को मार डाला था। लड़ाई के दौरान मरे ब्रिटिश सैनिकों तो एक गहरे गड्ढे में दफना दिया गया लेकिन मृत भारतीय सिपाहियों के शवों को यूँ ही सड़ने के लिए छोड़ दिया गया था। 1858 की शुरूआत में फेलिस बीटो ने परिसर के भीतरी हिस्सों की एक कुख्यात तस्वीर ली थी जो पूरे परिसर में मृत सैनिकों के बिखरे पड़े कंकालीय अवशेषों को दिखाती है।


वर्षों के दौरान बाग़ में जगह जगह से अकस्मात निकल आये तोप के गोले, तलवार और ढालें, बंदूक और राइफल के टुकड़े, अब एक संग्रहालय में सुरक्षित रखे गये हैं। बाग़ की दीवारों पर इस द्वंद के दौरान पड़े निशान इस ऐतिहासिक घटना की गवाही देते हैं।


इस लड़ाई का स्मरण कराती एक दलित महिला ऊदा देवी की एक मूर्ति उद्यान परिसर में कुछ साल पहले ही स्थापित की गयी है। ऊदा देवी घिरे हुये भारतीय सैनिकों की ओर से लड़ी थी। ऊदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर एक ऊँचे पेड़ पर डेरा जमाया था। उसके पास कुछ गोला बारूद और एक बंदूक थी। जब तक उसके पास गोला बारूद था उसने ब्रिटिश हमलावर सैनिकों को बाग में प्रवेश नहीं करने दिया था पर जब उसका गोला बारूद खत्म हो गया उसे ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोलियों से छलनी कर दिया गया।




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